सागर द्वीप में विद्युतीकरण


सागर द्वीप को सामान्य बोलचाल मे 'गंगासागर' के रूप मे भी जाना जाता है, यह एक घनी आबादी वाला द्वीप है जो भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के सुंदरवन बायोस्फीयर रिजर्व के अंतर्गत आता है। प्राचीनकालीन धार्मिक और सांस्कृतिक संकेतार्थों के बावजूद इस द्वीप की सामाजिक आर्थिक वृद्धि ग्रिड बिजली के उपलब्ध न होने के कारण कुछ सीमा तक सीमित थी। इस द्वीप पर रहने वाले लोग मुख्यतया सोलर फोटोवोल्टेयिक सेलों, डीजल जेनरेटर सेटों, केरोसिन आयल, लकड़ी के इंधन के माध्यम से अनियमित तरीकों से प्रदत्त उर्जा पर निर्भर थे। वर्ष 2012 में आईसीजेडएमपी के अंतर्गत 100 प्रतिशत विद्युतीकरण कार्य शुरू होने के बाद से सागर द्वीप की स्थिति में महत्वपूर्ण परिवर्तन आने शुरू हो गए थे। यह कार्य डब्ल्यूबीएसईडीसीएल द्वारा शुरू किया गया है।
आईसीजेडएमपी ने 384 सर्किट किमी. एचटी लाइन औ 835.238 सर्किट किमी. एलटी लाइन पर तार चढ़ाने, 30,466 खंबों को खड़ा करने और 595 वितरण ट्रांसफार्मरों को संस्थापित करने के कार्य का वित्तपोषण किया था। विद्युतीकरण के संबंध में डब्ल्यूबीएसईडीसीएल द्वारा किए गए सेवा सुधारों की मात्रा को नीचे दिया गया है:
विवरण | परियोजना* से पहले (2010) | वर्तमान स्थिति (31.03.2018 के अनुसार) |
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विद्युतीकृत गांवो की संख्या | 5 | 9 |
विद्युतीकृत मौजो की संख्या | 19 | 42 |
कुल सेवा कनेक्शन | 622 | 50312 |
व्यावसायिक उपभोक्ताओं की संख्या | 415 | 4652 |
औद्योगिक उपभोक्ताओं की संख्या | 1 | 186 |
विद्युतीकृत स्कूलों की संख्या | 4 | 190 |
विद्युतीकृत/कनेक्टेड अस्पतालों/स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या | 1 | 4 |
विद्युतीकृत/कनेक्टेड वाटर वर्क की संख्या | 2 | 443 |
ग्रिड बिजली का रेजोनेंस केलिडोस्पिक रूप में देखा जाएगा क्योंकि यह सागर द्वीप में विविध सामाजिक-आर्थिक कार्यकलापों में वृद्धि के अग्रदूत की तरह कार्य करेगा।
विद्युतीकरण कार्यक्रम के सफल कार्यान्वयन का प्रदूषण नियंत्रण पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इस परियोजना के शुरू होने के पहले कुछ समय के लिए सागर द्वीप में बिजली की आपूर्ति के लिए डीजी सेट लगाए गए थे। डीजी सेट चलाने के लिए एक वर्ष में 210 किलो लीटर डीजल की खपत हुई थी और इससे वातावरण में अन्य हानिकारक गैसों यथा CH4, SO2, NOx के साथ साथ अनुमानत: 5,67,000 किग्रा. कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन हुआ था। इस प्रकार डीजी सेट और किरोसिन तेल का उपयोग चरणबद्ध रूप से बंद करने से पर्यावरण में सुधार हुआ है।
ग्रिड बिजली के कारण सागर द्वीप में स्वास्थ्य सुविधाओं में भी सुधार हुआ है क्योंकि इसकी वजह से ब्लड ट्रांसफ्यूजन यूनिट, पैथालोजिकल लेबोरेटरिज की स्थापना के साथ साथ मरीजो के उपचार में प्रयुक्त होने वाली बिजली से चलने वाली अनके मशीनों का उपयोग संभव हो सका। मरीजों के आपरेटिव और इनवेसिव चिकित्सकीय उपचार मेंउन्नत गुणवत्ता प्राप्त की गई। दवा की दुकानों मे अब रेफ्रिजरेटर हैं जिससे इस द्वीप की ड्रग इंवेंट्री क्षमता में सुधार हुआ है।
ग्रिड बिजली की उपलब्धता के साथ अनेक स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा का आरंभ हुआ है। वरिष्ठ विद्यार्थी अब विद्युत चालित उपकरणों से युक्त भौतिक प्रयोगशालाओं का प्रयोग कर सकते हैं। विद्युतीकरण होने के साथ साथ कुछ स्कूलों में मोबाइल मरम्मत संबंधी व्यावसायिक पाठ्यक्रम भी शुरू हुए हैं। बिजली के पंखे लग जाने से अब गर्मियों में भी कक्षाएं आरामदायक रहती हैं। विद्युत प्रकाश की सहायता से अब विद्यार्थी सायंकाल को देर तक अध्ययन कर सकते हैं। बिजली के पंप पर आधारित पानी की आपूर्ति ने स्कूलों में पेयजल की आपूर्ति में वृद्धि करने और स्वच्छता की स्थिति को सुधारने में योगदान दिया है।
बिजली से चलने वाले पंप और पानी की सप्लाई दोनों अब घर परिवार स्तर पर उपलब्ध है। घरेलू उपकरणों जैसे कि टीवी, फ्रिज, एअर कंडीशनर आदि के आ जाने से जीवन की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। सागर द्वीप में स्ट्रीट लाइटिंग के क्षेत्र में वृद्धि होने से महिलाएं अब सांयकाल को यात्रा करने में सुरक्षित महसूस करती हैं।
विद्युतीकरण ने एसएमई क्षेत्र को भी बढ़ावा दिया है क्योंकि अनेक छोटे पैमाने की ग्रिल फैक्ट्रियां, धान कूटने की यूनिटें, तेल प्रसंस्करण यूनिट से आटा निकालना, कोंच शेल पर हस्तशिल्प आदि कार्य करने वाली एसएमई की स्थापना हुई है। सागर द्वीप के दूरदराज के स्थानों पर भी बाजार अब देर रात तक अपना कारोबार करते हैं।
गंगासागर मेले के दौरान यात्रियों का प्रबंधन अब स्ट्रीट लाइटिंग और पब्लिक एड्रेस सिस्टम के माध्यम से आसान और प्रभावी हो गया है। सागर द्वीप मे ग्रिड बिजली से बिना किसी संदेह के यह सिद्ध हो गया है कि परियोजना शुरू करते समय यह न केवल मांग संचालित परियोजना पहल थी किंतु सही मायने में यह एक गेम चेंजर सिद्ध हुई है जिसने आजीविका और जीवन की गुणवत्ता के नए अवसरों को खोलने के साथ स्थाई विकास की गति को भी तेज कर दिया है।
तटीय प्रदूषण छूट के लिए तकनीकें
जामनगर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के बारे में एक केस स्टडी


पृष्ठभूमि
भारत सरकार ने भारत में तटीय अंचलों के पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक कार्यनीति तैयार करने में सहायता के लिए विश्व बैंक से संपर्क किया था और तदुपरांत भारत सरकार ने ‘एकीकृत तटीय अंचल प्रबंधन परियोजना (आईसीजेडएमपी)’की परिकल्पना की तथा प्रायोगिक निवेश के तौर पर इन परियोजनाओं को आरंभ मे गुजरात, ओडिशा और पश्चिम बंगाल राज्यों में शुरू किया गया। आईसीजेडएमपी तटीय संसाधनों/मरीन जैव विविधता के संरक्षण के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 2005 में समर्थित स्थाई विकास और तटीय क्षेत्र संरक्षण के अधिदेश का परिणाम था। इस परियोजना को जामनगर नगर परिषद द्वारा कार्यान्वित किया गया है और इसके लिए आईसीजेडएम गुजरात अर्थात गुजरात इकोलोजी आयोग (जीईसी) के एसपीएमयू से तकनीकी सहायता प्राप्त की गइ्र है।
लक्ष्य
तटीय और मरीन जैव विविधता के संरक्षण के लिए जामनगर नगर निगम (जामनगर शहर सहित जामनगर शहरी विकास प्राधिकरण) के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र के लिए भूमिगत सीवरेज सिस्टम का विकास करना।उद्देश्य
- तटीय और मरीन पर्यावरण पर अशोधित मलजल निस्तारण के प्रभाव को कम से कम करने के लिए जामनगर में प्रभावी भूमिगत सीवरेज सिस्टम की स्थापना करना और इस प्रकार मूंगा और मैनग्रोव जैसे तटीय जैव विविधताओं के संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ना।
- 70 एमएलडी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना करना।
लाभ
- सीवेज का बेहतर प्रबंध होने से मरीन जीवन का संरक्षण।
- मरीन प्रजातियों, समुद्री घास और मूंगे जो अशोधित सीवेज को समुद्र में डंप करने से लंबे समय से विलुप्त हो गए थे, को पुन: जीवन प्रदान करना।
- मरीन जैव विविधता का बेहतर प्रबंधन और संरक्षण करना।
- भूजल और पाइपलाइन के जरिए पहुंचाए जा रहे जल में दूषण के अवसर को कम करना जिससे बीमारियों की घटनाओं में कमी आएगी और स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार होगा।
- सिंचाई के लिए शोधित जल और सुखी गाद का खाद के रूप में उपयोग से किसानों को आर्थिक लाभ।
- सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पर स्थाई रोजगार का सृजन होगा।
परियोजना पर एक नजर
आरंभ होने की तिथि | जून 2010 | समाप्त होने की तिथि | जून 2016 |
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लागत | 88 करोड़ रूपए | वित्तपोषण करने वाली एजेंसी | विश्व बैंक |
कार्यान्वयन एजेंसियां
12 अप्रैल, 2010 को एकीकृत तटीय अंचल प्रबंधन परियोजना के अंतर्गत जामनगर नगर निगम और एसपीएमयू-जीईसी के बीच औपचारिक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए और जेएमसी को आईसीजेडएमपी के अंतर्गत परियोजना का कार्र्यान्वयन करने तथा प्रबंध करने के लिए कार्यकारी एजेंसी के रूप में चुना गया। जामनगर शहर के सीवरेज घटकों का कार्यान्वयन करने के लिए जीईसी एसपीएमयू-जेएमसी ने परियोजना प्रबंध परामर्शदाता के रूप में माट मैकडोनाल्ड प्रा. लिमि. को नियुक्त किया था।
70 एमएलडी क्षमता का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) – डिजाइन; बनाओ; चलाओ और स्थानांतरण करो (डीबीओटी)
अपनी कार्यवाहियों के भाग के रूप में समिति ने यह निष्कर्ष निकाला और सिफारिश की थी कि मैसर्स एस्सार प्रोजेक्ट (इंडिया) लिमिटेड/थर्माक्स लिमिटेड-जेवी द्वारा प्रस्तुत बोली सबसे कम मूल्य वाली थी और पर्याप्त रूप से उत्साहजनक बोली थी जिसका मूल्य 78 करोड़ रूपए था। इसमे आरंभिक 2 वर्षों के लिए प्रचालन और रखरखाव शामिल था तथा 13 वर्षो के प्रचालन और प्रबंधन के उपरांत प्रचालक बोली मानक के भाग के रूप में शोधित जल की बिक्री के माध्यम से जेएमसी को प्रीमियम के रूप में 2 करोड़ रूपए अदा करेगा।
प्रोसेस तकनीकी और उपचार मेथड एस्सार-जाइलम द्वारा अपनाए गए जिसने गंदे पानी के सेकेंडरी उपचार का एसबीआर-आईसीईएएस मेथड का प्रस्ताव किया था।
प्रोसेस ट्रीटमेंट स्कीम
प्लांट का निर्माण करने के साथ साथ इसका ट्रायल रन, टेस्टिंगऔर चालू करने का कार्य प्रचालक द्वारा 31 अगस्त, 2016 को सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया गया। ट्रायल रन, टेस्टिंग और आरंभिक अवधि के दौरान सभी यूनिटों के लिए लाइव लोड टेस्ट का परीक्षण किया गया, और संस्थापित सभी इलैक्ट्रो-मकैनिकल और इंस्ट्रुमेंटल यूनिट के लिए प्रचालन से संबंधित सभी छोटे मुद्दों को समझा गया, और इस प्लांट के कार्य निष्पादन और चालू होने के दौरान आवश्यकता के आधार पर सभी प्रकार के उपकरणो की सर्विसिंग और केलिब्रेशन किया गया। लैब केमिस्ट और प्लांट मैनेजर की नियुक्ति के साथ इस अवधि में प्रयोगशाला की स्थापना की गई और पानी की गुणवत्ता मानक (बोली अपेक्षा के अनुसार) की जांच करने के लिए अपेक्षित सभी प्रकार के उपकरणों को प्रयोगशाला में उपयोग हेतु केलिब्रेशन के उपरांत स्थापित किया गया।
स्वास्थ्य लाभ
आंकडे बताते हैं कि मलेरिया, डेंगु, चिकुनगुनिया के साथ साथ डायरिया/उल्टी, कालरा, पीलिया और टाइफाइड के मामलों में 2011 से 2016 की अवधि के दौरान स्पष्ट कमी आई है।
सीखे गए अनुभव
यह सौराष्ट्र के तटवर्ती क्षेत्र में पहली एकीकृत सीवेज अवसंरचना परियोजना थी। परियोजना का कार्यान्वयन करने वाले लोगो के लिए परियोजना का कार्यान्वयन करना नि:संदेह एक बड़ी चुनौती थी। परियोजना के कार्यान्वयन के दौरान विभिन्न मुद्दे/समस्यायें सामने आए जो विशेष रूप से फील्ड कंडीशन, समय के अनुसार ठेकेदारों का कार्य निष्पादन न किया जाना और अन्य सरकारी विभागों से अनुमोदन प्राप्त करने में विलंब आदि से संबंधित थे और इनका समाधान कर लिया गया। इन मुद्दों को उचित तरीके से संभाला गया किंतु इसमें अतिरिक्त समय लगा। इन मामलों को सीखे गए अनुभव के रूप में सारांकित किया जा सकता है ताकि जेएमसी के साथ साथ अन्य समान प्राधिकरणों द्वारा कहीं और इसी प्रकार की परियोजनाओं को कार्यान्वित करने के दौरान भविष्य में अतिरिक्त समय और लागत से बचा जा सके।