जोखिम रेखाओं का मानचित्रण करना, रूपरेखा बनाना तथा सीमांकन करना
आजीविका सुरक्षा और विकास संबंधी तटीय जोखिमों में वृद्धि हो रही है। भारतीय तट गंभीर मौसमी घटनाओं जैसे कि साइक्लोन, तुफान, तीब्र लहरों का सामना करते हैं जो जीवन और संपदा को भारी क्षति पहुंचाते हैं। जोखिम रेखाओं का मानचित्रण, रूपरेखा और सीमांकन करने से मुख्य भूमि भारत में तटीय अंचल की सीमाओं को परिभाषित करेगा (जो परिणामस्वरूप राज्यों/स्थानीय आईसीजेडएम योजनाओें की सीमाओं की आयोजना स्थापित करने मे सहायता करेगा) और आईसीजेडएम योजनाओं के भीतर जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले संभावित वृद्धिशील प्रभावों सहित बार-बार उत्पन्न होने वाले तटीय जोखिमों के प्रभावों को शामिल करने में सहायक होगा।
जोखिम रेखा की मैपिंग से प्राप्त आउटपुट भारत के मुख्यभूमि तटों पर एकत्र तटवर्ती अवसाद सेलों का मानचित्रण और चित्रांकन
अवसादी सेल स्व-निहित यूनिट के रूप में कार्य करते हैं जिससे अवसादी सेल के भीतर कोई विकास इसकी सीमा के बाहर के क्षेत्र पर बहुत कम प्रभाव डाल पाता है। तटीय अवसादी सेल और उप-सेल का मानचित्रण और चित्रांकन वैयक्तिक आईसीजेडएम योजनाओं की बाह्य सीमाओं का निर्धारण करने के लिए की गई है।
पर्यावरण के संबंध में संवेदनशील क्षेत्रों का मानचित्रण, चित्रांकन और सीमांकन (ईएसए)
तटवर्ती और मरीन क्षेत्रों में पारिस्थितिक रूप से संवेदी क्षेत्र मरीन जीवन की जैव-विविधता को बनाए रखने और तटों की प्रकार्यात्मक अखंडता को बनाए रखने के लिए अति महत्वपूर्ण हैं। ईएसए को संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सीआरजेड अधिसूचना 2011 तथा आईपीजेड अधिसूचना 2011 के माध्यम से सीआरजेड-। क्षेत्र को अधिसूचित किया है। इस उद्देश्य के लिए आईसीजेडएम परियोजना के अंतर्गत सभी ईएसए का मानचित्रण और चित्रांकन किया गया है। कुल 893 ईएसए के पैचों की पहचान की गई है और इनके संरक्षण उपायों के लिए विस्तृत फील्ड सर्वेक्षण किया गया है।
ईएसए संघटकों के अंतर्गत साइकाम दो परियोजनाओं का कार्यान्वयन कर रहा है:
- गुजरात के नवसारी जिले के डांडी गांव में राष्ट्रीय डांडी विरासत पहल स्मारक परियोजना के लिए हरित अभियान; और
- तमिलनाडु राज्य के नागापट्टीनम जिले का वेदारणयम गांव।
जी.ए.एन.डी.एच.आई. परियोजना: राष्ट्रीय डांडी विरासत पहल के लिए हरित अभियान(गांधी) परियोजना डांडी गांव और आस-पास के पांच गांवों नामत: सिरामपुर, ओंजल, मीटवाड, सुल्तानपुर और आट में कार्यान्वित की गई थी क्योंकि गांधी मेमोरियल के रूप में विकास के लिए इन गांवों को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत पारिस्थितिक संवेदी क्षेत्र के रूप में पदनामित किया गया है। इस परियोजना में स्थानीय समुदायों के सामाजिक आर्थिक उन्नति के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए गांधी के विचारों को बढ़ावा देने का लक्ष्य परिकल्पित है। इस परियोजना के अंतर्गत मैनग्रूव पौधरोपण, शेल्टर बैल्ट पौधरोपण समुद्र तट की सफाई, स्वच्छता प्रबंधन, मौजूदा जलाशयों की पुर्नरचना और परिरक्षण और समुदाय को जागरूक करने जैसे परिरक्षण और संरक्षण कार्यकलाप किए गए हैं। ईएसए अधिसूचना के अनुसार पारिस्थितिक रूप से संवेदी अंचल के लिए एकीकृत विकास योजना हेतु तैयारी और कार्यान्वयन सहायता के लिए परामर्शी सेवाओं के लिए कार्य सौंप दिया गया है। इस संघटक का कार्यान्वयन गुजरात पारिस्थितिकी आयोग, गांधीनगर, गुजरात द्वारा किया जा रहा है।
वेदारण्यम परियोजना: वेदारण्यम तमिलनाडु राज्य के नागापट्टीनम जिले का एक तटवर्ती हिस्सा है जो नमभूमि, दलदल और छोटे लैगून जैसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी का निवास स्थल है जो रेह, समुद्री शैवाल, मैनग्रोव का उत्पत्ति स्थल है। इस तालुक के अंतर्गत लगभग 55 गांव आते हैं जहां के समुदाय मछली पकड़ने, कृषि, झींगे की खेती और नमक उत्पादन पर निर्भर हैं। इस क्षेत्र में पारिस्थितिकी संचालित आजीविका तटीय कृषि कार्यकलाप है और यह भी पर्यावरणीय और सामाजिक समस्याओं से अवरूद्ध है। राष्ट्रीय क्षमता में वृद्धि करने और तटीय क्षेत्रों की पारिस्थितिकी सुरक्षा और तटीय समुदायों की आजीविका सुरक्षा को एकीकृत करने के लिए वेदारण्यम को आईसीजेडएम परियोजना के अंतर्गत परियोजना क्षेत्र के रूप में चुना गया था। सामुदायिक जागरूकता, एक्सपोजर दौरे, सहभागी ग्रामीण मूल्य निर्धारण, गांव विकास परिषद की स्थापना, और जल निकायों का परिरक्षण, मैनग्रोव पौधरोपण, नान-मैनग्रोव पौधरोपण, रेह का परिरक्षण, आनुवंशिक बागीचों की स्थापना के माध्यम से उत्पत्ति स्थानों के परिरक्षण जैसे कार्यकलाप किए गए हैं। इस संघटक का कार्यान्वयन एम. एस. स्वामीनाथन शोध संस्थान, चेन्नै के माध्यम से किया जा रहा है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और राज्य तटीय अंचल प्रबंधन प्राधिकरणों का क्षमता वर्धन तथा तटीय अंचल प्रबंधन के लिए राष्ट्रव्यापी प्रशिक्षण कार्यक्रम
राष्ट्रीय स्थाई तटीय प्रबंधन केंद्र (एनसीएससीएम) की स्थापना करना
कुशल तटीय प्रबंधन के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, राज्य सरकारों, संस्थाओं, संगठनोंऔर जनता को सहायता देने के लिए एक विश्व स्तरीय संस्थान की स्थापना करना।